मछुआ समुदाय पूरे भारत में लगभग 10 करोड़ की आबादी वाला समाज है | 150 से ज्यादा जातियों और उपजातियों में बंटा ये समाज भारत के
प्रत्येक राज्य में अलग अलग स्टेटस
रखता है | यानि किसी राज्य में SC, कहीं ST, कहीं विमुक्त जाति (NT) , कहीं OBC तो कहीं Gen | दिल्ली का मल्लाह SC ,यूपी का OBC , मध्य प्रदेश का ST | मध्य प्रदेश की कहानी और भी अजीब है |यहाँ रैकवार OBC में, धीवर SC में, मल्लाह OBC में, मांझी, मझवार ST में , बथुड़ी (बाथम) ST में, नावडा व तुरैहा OBC में | .मजाक बना रखा है
!!! मध्य प्रदेश के ही हमारे कीर भाई ST में हैं जबकि हिमाचल प्रदेश के कीर SC में, तो पंजाब व राजस्थान में OBC में रखे गए हैं |
ये अन्याय मछुआरों के अतिरिक्त भारत में किसी अन्य समाज से बिलकुल भी नहीं है | ये गैरबराबरी और ज़हर का प्याला हमारे समाज के हिस्से में ही आया है | सरकारों ने इस समाज के लोगों को सौतेली औलाद की तरह रखा और कुछ न दिया गया | विकास की दौड़ को हमने तमाशबीन बनकर ही देखा और दूसरों की जीत पर तालियाँ ही बजाते रहे हैं | हमारे आरक्षण के नाम पर कदम कदम पर विसंगतियां खुद सरकारों ने ही पेश कीं, समाज को सिवाय झूठे आश्वासनों के अलावा आज तक कुछ नहीं दिया | योजनायें हमारे लिए आज भी सपना सरीखा हैं |
हमारे लोग भी कितने सीधे हैं कि सरकार कोई सा भी प्रमाण पत्र दे , चुपचाप ले लेते हैं | विरोध तक नहीं करते | क्या ये सरकारों की धोखाधडी नहीं है अशिक्षित और कानूनी दांव पेचों से अनभिज्ञ लोगों से ? क्या कोई बता सकता है कि केवट, मल्लाह, मांझी (मझवार), नाविक में शाब्दिक रूप से कोई अंतर है ? भारत के प्रत्येक शब्दकोष में इनके मायने एक ही हैं तो ये कमज़र्फ सरकारें इसे अलग अलग करने पर क्यों तुली हैं ?. फिशर मैन / मछुआरा शब्द बुरा नहीं हैं | एक दम स्पष्ट है, सही सामाजिक पहचान द्योतक है , पारंपरिक है,
ये अन्याय मछुआरों के अतिरिक्त भारत में किसी अन्य समाज से बिलकुल भी नहीं है | ये गैरबराबरी और ज़हर का प्याला हमारे समाज के हिस्से में ही आया है | सरकारों ने इस समाज के लोगों को सौतेली औलाद की तरह रखा और कुछ न दिया गया | विकास की दौड़ को हमने तमाशबीन बनकर ही देखा और दूसरों की जीत पर तालियाँ ही बजाते रहे हैं | हमारे आरक्षण के नाम पर कदम कदम पर विसंगतियां खुद सरकारों ने ही पेश कीं, समाज को सिवाय झूठे आश्वासनों के अलावा आज तक कुछ नहीं दिया | योजनायें हमारे लिए आज भी सपना सरीखा हैं |
हमारे लोग भी कितने सीधे हैं कि सरकार कोई सा भी प्रमाण पत्र दे , चुपचाप ले लेते हैं | विरोध तक नहीं करते | क्या ये सरकारों की धोखाधडी नहीं है अशिक्षित और कानूनी दांव पेचों से अनभिज्ञ लोगों से ? क्या कोई बता सकता है कि केवट, मल्लाह, मांझी (मझवार), नाविक में शाब्दिक रूप से कोई अंतर है ? भारत के प्रत्येक शब्दकोष में इनके मायने एक ही हैं तो ये कमज़र्फ सरकारें इसे अलग अलग करने पर क्यों तुली हैं ?. फिशर मैन / मछुआरा शब्द बुरा नहीं हैं | एक दम स्पष्ट है, सही सामाजिक पहचान द्योतक है , पारंपरिक है,
अपमान जनक तो कतई नहीं है टाइटिल तो कुछ भी लिख सकते हैं |
-Nishad Bansuri
-Nishad Bansuri
यही तो दुर्भाग्य है हमारा
ReplyDeleteसर हमारे समाज को संगठित एंव संघर्ष करने की ज़रुरत है
DeleteRajkumar nishad
ReplyDeleteAap bilkul shahi ho ji ye nainsaphi sirph hamare hi samaj ke liye hai
ReplyDeleteHame title ek rakhna chahiye only one (nishad)
ReplyDeleteJarirat he desh me sahni mallaho ko ek jut home ka
ReplyDeleteKab bhala hoga
ReplyDeleteYe bahut jaruri hAi sir gi ham bahut niche hai ab ham sab aap k sath hai hmare sbhi machuare bhai ek,hokar ek taitàl ho ek pahchan ho. Nishad samaj jindabad RAGHUVIR MAHATO (chapra) BIHAR
ReplyDeleteAaj mai aap sbse request krta hu aap bhai log apne logo education Dene ka kst kre ..agar aap Paise wale h to thoda Paisa gareeb baccho ko education Dene kharch kre ...aaj mallah jaga to kal apna hq khud lega kisi ko chutiya nhi bna skte h neta log
ReplyDelete....sabse educated bno......Mai Rajnikant Nishad Jaunpur kerakat se Mai Engineer Student hu .7309484908