आज कुदंकुलन परमाणु संयत्र का विरोध कर रहे लोगो पर तमिलनाडु सरकार ने अपनी
गुंडई दिखा दी. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करने वाली सरकार ने
दिखाया के लोगो के भय और आक्रोश के उसे कोई परवाह नहीं है. कुदंकुलन सयंत्र
के विरोध में भरी संक्या में ग्रामीण मच्चुअरो के प्रतिरोध के चलते पहले
सरकार ने झूठे वायदे किये. क्या आप जान सकते है के ७००० लोगो पर
रस्त्रद्रोह का मुक़दमा लगाया गया है और लगभग ४०,००० पर अन्य मुक़दमे लगाये
गए हैं. शर्मनाक बात यह है के एक सयंत्र के लगने पर भी सरकार ने कोई भी
प्रयास नहीं किया के लोगो की बात सुनी जाए.
हमें पता है के भारत को बिजली की जरुरत है. सबको पता है. लेकिन हमें यह भी
देखना है के देश के निर्माण के नाम पर जो लोगो का बलिदान किया जाता है उस
पर सवाल करने की जरुरत है. चाहे कुडनकुलम हो या ओम्कारेश्वर, देश के विकास
के नाम पर लोगो की बलि दी गयी है. आज़ादी के बाद से भारत में ६-८ करोड़ लोग
विस्थापित हुए है. इसका ४०-५०% यानि लगभग ३-४ करोड़ लोग आदिवासी समाज के
लोग है जिन्हें दुबारा नहीं बसाया जा सका. शेष लोग दलित और पिच्च्दी
जातियों से हैं.
ओंकारेश्वर में सरकार ने किसी को भी एक इंच जमीन नहीं दी. सरकार ने कोर्ट
में साफ़ कहा के उसके पास जमीन नहीं है. यह मध्य प्रदेश सरकार उद्योगों के
लिए २० हज़ार हेक्टारे जमीन १५ सितम्बर तक देने को तैयार है. कोयले घोटाले
में उद्योगपतियों की बदमाशियों के राज तो अभी पूरे तरीके से खुले नहीं है.
सवाल यह है के जब सरकार ने संविधान में किये गए अपने वायदों को पूरा नहीं
किया तो उसको लोगो को बेदखल करने का क्या कोई अधिकार है.
५० वर्ष के बाद भी देश में लोग भूख से मरते है. जब उसे कोई बताये के भारत
ने श्रीहरिकोटा से कोई यान छोड़ा है तो भूखे मजदूर को उससे क्या लेना. क्या
उस भूख में रहते हुए उसे देश के प्रगति पर कोई गर्व हो सकता है. यह कैसी
प्रगति जहाँ लोग भूख से मर रहे हैं.
कुदंकुलन के लोगो की अपनी चिंताएं है. २००४ में मैंने वहां का दौरा किया था
और मेरे मित्र उदयकुमार ने मुझे पूरे क्षेत्र दिखाए जो भारत के विकास ने
नाम पर समाप्त होने जा रहा था. अपने जीवन में कुच्छ इलाको में जाकर मुझे
हमेशा अपनापन और खूबसूरती दिखाई दी और उसमे तमिलनाडु राज्य और कन्याकुमारी
का क्षत्र है. समुद्र का इतना खूबसूरत नज़ारा बहुत कम दिक्खाई देता है
लेकिन आज उस क्षेत्र की ख़ूबसूरती को विकास ने डंक मार दिया है. वोह
खूबसूरती नहीं दिखाई देती जो थी. उस वक़्त जब मैं और उदय समुद्र में बालू
माफिया के पास गुजरे और मैं कुच्छ तस्वीरे खींच रहा था तो हमें धमकी दी गयी
के चुप चाप चले जाओ. मैं मछुआ समाज के नेताओ से मिला जो इस प्लांट का
विरोध कर रहे थे. उनके विरोध बिजले से नहीं अपितु अपनी जिन्दगी से है. मैं
मान सकता हूँ लोग परमाणु सयंत्रो का विरोध कर रहे हैं वो उसके विश्श्ग्य
हैं मैं नहीं लेकिन चेर्नोब्य्ल, भोपाल, फुकिशामा और अन्य स्थानों पर हुई
दुर्घटनाओ को अच्छे से जानता हूँ और मुझे विश्वास है के कुदंकुलन के लोग,
बच्चे सब इसी बात से चिंतित है. यह चिंता श्रीलंका की भी है क्योंकि किसी
भी दुर्घटना की स्थिथि में उनके यहाँ भी गंभीर संकट पैदा हो सकता है.
बहस बिजली या विकास की नहीं है. भारत का नागरिक होने के नाते अगर सरकार
किसी की गरीबी नहीं दूर कर सकती है तो न करे लेकिन लोगो की बनी बनाई जिंदगी
को खत्म करने का अधिकार उसे नहीं है. अंतरास्ट्रीय कानूनों के अनुसार
सरकार को कोई भी परियोजना शुरू करने से पहले लोगो को उसकी पूरी जानकारी
देनी पड़ते है और फिर यदि लोग चाहे तभी कोई योजना लागू की जा सकती है. क्या
भारत सरकार या राज्य सरकारों ने कभी भी ऐसा किया के लोगो को किसी योजना की
जानकारी दी हो अन्यथा कोई क्या अपने के बर्बाद करने के लिए किसी परियोजना
का समर्थन करता है क्या. भारत की स्थिथि जापान और जर्मनी जैसी नहीं है जो
गंभीरता से विकल्पों की तलाश कर रहे हैं.
बिना किसी विकल्प दिए लोगो को उनकी जमीन से बेदखल करना क्या रास्त्र द्रोह
नहीं है. ७००० लोगो पर रस्त्रद्रोह का आरोप लगाना क्या मज़ाक नहीं है.
बाबरी मस्जिद के विध्वंश और दिल्ली में १९८४ के सिख विरोधी दंगो के बाद या
गुजरात में २००२ के खून खराबे पर तो एक भी व्यक्ति पर देशद्रोह का आरोप
नहीं लगाया गया. और तो और, अभी तक सामान्य कानून के तेहत भी कोई सजा नहीं
हो पायी है लेकिन अपनी जमीन के लिए अहिंसात्मक आन्दोलन करना देशद्रोह कैसे
हो सकता है ? क्या सरकार को हमारी आज़ादी और हमारे जीवन को लेने का अधिकार
है ? आज समय आ गया है जब हमें ऐसे कानूनों का विरोध करना चाहिए जो देश के
लोकतंत्र को कमज़ोर करते हैं और लोकतंत्र के नाम पर राज कर रही ताकतों को
फासीवादी अधिनायकवाद की तरफ ले जाते हैं.
कुदंकुलन के संघरशील साथियो को हमारा सलाम और हम उम्मीद करते हैं के सरकार
उनकी बातो को सुनेगी और उन्हें अपराधी नहीं बनाएगी. ऐसे अधिकारीयों के
खिलाफ कार्यवाही की जाए जिन्होंने निहत्थे लोगो पर गोलियां चलायी और लाठिया
बरसाई. - विद्या भूषण रावत