Wednesday, 5 December 2012

दशरथ मांझी के गांव में सरकारी पावडर का हाल


दशरथ मांझी कभी गया के आसपास के लोगों के नायक हुआ करते थे, अब बिहार के सरकारी नायक हैं. पहाड़ काट कर रास्ता बना देने के उनके बेमिसाल कारनामे के कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनसे काफी प्रभावित थे. उनके गांव के लोग बताते हैं कि एक बार नीतीश ने उन्हें अपनी कुरसी पर बिठा दिया था और कहा था कि आज जो चाहे मांग लीजिये. तब भूमिहीन दशरथ मांझी ने शायद उनसे पांच एकड़ जमीन की मांग की थी, जो खुदा-न-खास्ता उनके जीते जी उन्हें सरकार दे नहीं पायी. हुक्मरानों का यही हाल है, वे अपने आप को दुनिया का मालिक मांगते हैं और हर चीज का वादा कर बैठते हैं. मगर वादा पूरा करना अफसरों का काम होता है और अफसर को गांधी जी की सुगंध मिली तो ठीक नहीं तो कानून बघारना शुरू कर देते हैं. खैर, जमीन नहीं मिली, हालांकि नीतीश कुमार ने उनके नाम पर महादलित युवक-युवतियों को रोजगारपरक प्रशिक्षण दिलाने के लिए एक योजना शुरू कर दी है, दशरथ मांझी कौशल विकास योजना. अब यह तथ्य भी सवालों के घेरे में है कि इस योजना के तहत कितने महादलित युवक-युवतियों का कौशल विकसित हुआ है, मगर दशरथ मांझी को सरकारी नायक बना देने से नीतीश अपनी पार्टी को जो राजनीतिक लाभ दिलाना चाहते हैं उसमें कुछ संभावना जरूर बनती है... खैर, मीडिया हस्तक्षेप के एक आयोजन के दौरान कई नये-पुराने साथियों के साथ दशरथ मांझी के गांव जाने और देखने का मौका मिला. वहां कई भ्रम टूटे...
सबसे पहले हमारी टोली गेहलौर के उस स्थान पर पहुंची जहां दशरथ मांझी ने अपने 22 साल के पागलपन(लोग उस वक्त यही कहते थे) की वजह पहाड़ को काट कर वजीरगंज और अतरी प्रखंड के बीच की 75 किमी की दूरी को घटाकर एक किमी कर दिया था. उस रास्ते पर सड़क बन चुकी थी और बगल में एक स्मारक भी. हमलोग दो गाड़ियों से थे, तकरीबन 25-30 लोग... हमारे पास दसेक कैमरे रहे होंगे, बांकी मोबाइल वाले कैमरे... जब इतने कैमरे एक साथ क्लिक-क्लिक का शोर मचाने लगे तो जाहिर सी बात है, आसपास के लोगों ने समझ लिया कि ये साधूजी(दशरथ मांझी) का कमाल देखने आये हैं. एक बुलंद आवाज वाली संभवतः मछुआरन(मछुआरनों के सशक्तिकरण का मैं बचपन से कायल रहा हूं) की आवाज अचानक गूंजने लगी, लोग बाग उसके चारो-ओर जमा हो गये. मैं दूर-दूर से ही उनका आख्यान सुनने लगा. ... साधू बाबा के मेहरारू का गगरी फंस के गिर गया तो उसी दिन ठान लिये कि पहाड़ को उख्खाड़ के फेंकिये देना है... मगर महिला दो दर्जन पत्रकारों के सवालों की बौछार में गड़बड़ाने लगीं. बाद में पता चला कि माताजी इस गांव की नहीं हैं, उन्हें तकरीबन उतनी ही जानकारी है जितनी हमें... आसपास के लोगों ने उनके अधजल गगरी छलक जाये वाले आचरण पर बकायदा मगही में उन्हें दोदना भी शुरू कर दिया... रहती हैं पटना में और कहती हैं गेहलौर की बात... जाइये-जाइये.
खैर हम लोग आगे बढ़ गये... दशरथ मांझी के गांव दशरथ नगर की तरफ. गेहलौर पंचायत है और दशरथ नगर गांव. दोनों के बीच सवा किमी का फासला है. दशरथ नगर नाम से कंफ्युजियाइयेगा नहीं. यह नाम सरकारी नहीं है... दशरथ नगर नाम गांव समाज के लोगों ने दिया था. पहाड़ काट देने के बाद दशरथ मांझी अपने इलाके के लिए कोई साधारण हस्ती नहीं रह गये थे. लिहाजा जहां बसे उस जगह का नाम लोगों ने दशरथ नगर रख दिया.
यहां आज भी तकरीबन 50 मुशहर(सरकारी भाषा में महादलित) परिवार रहते हैं, सभी दशरथ मांझी के सगे-संबंधी ही हैं. उनका इकलौता बेटा भागीरथ पांव जल जाने के कारण जो बचपन से चलने फिरने में संघर्ष करता है(विकलांग शब्द का ठीक विकल्प है न, अब लोग नाराज तो नहीं होंगे) सपरिवार रहता है. पत्नी, बेटी-दामाद और नाती-नातिन.... साधू बाबा अब नहीं रहे. गांव बिल्कुल वैसा ही है जैसी बिहार की कोई और मुशहर बस्ती हो सकती है. साधू बाबा के सरकारी नायक बन जाने के बावजूद इसकी सूरत नहीं बदली है, हालांकि लालू सरकार के टाइम से ही इस गांव के चेहरे पर सरकारी योजनाओं का पावडर लगाने की कोशिश चलती रही है. लालूजी के समय गांव में 35 इंदिरा आवास बंटे, मगर इनमें से अधिकतर आवास पड़ोसी जिला नालंदा के बौद्ध खंडहरों जैसे नजर आते हैं. अधिकांश मकान खाली पड़े हैं और लोग वहां कपड़े सुखाते हैं या पुआल रखते हैं, रहने का काम फूस की झोपड़ियों में करते हैं. दो हैंडपंप लगवा दिये गये हैं, मगर दोनों बिगड़ गये हैं लिहाजा लोग एक गंदे कुएं(तसवीर चस्पा है, देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं) का पानी पीते हैं. पहाड़ तोड़ कर रास्ता बना देने वाले इंसान के गांव में किसी को हैंडपंप सुधारना नहीं आता, अगर दशरथ मांझी कौशल विकास योजना के तहत इस गांव के दो युवकों को हैंडपंप सुधारना ही सिखा दिया जाता तो उस योजना की भी एक उपलब्धि होती. एक एनजीओ ने गांव में चार शौचालय भी बनवाये थे(तसवीर लगी है, देख कर सब समझा जा सकता है) मगर कोई उसके पैन में बने छेद में निशानेबाजी करने के लिए तैयार नहीं हुआ. लिहाजा महिला और पुरुष आज भी समभाव से खेतों को उर्वरक उपलब्ध करा रहे हैं. इन्हीं हालात में गांव के लोग यह बहुमूल्य जानकारी भी दे रहे थे कि साधू बाबा को साफ-सफाई से बहुत प्रेम था, इसी वजह से 25-30 साल पहले वे अपने चचेरे भाइयों को गेहलौर गांव में छोड़कर यहां आ बसे थे. इसी संदर्भ में यह सूचना भी दी गयी कि वे अंधविश्वास और नशाखोरी के खिलाफ भी थे.
अच्छा हुआ साधू बाबा गुजर गये, नहीं तो गांव का यह हाल देखते तो वापस गेहलौर लौट जाते. हो सकता है, उन्होंने अपने जीते-जी यह सब देख भी लिया हो...
गांव के लोग साधू बाबा की याद में बहुत कुछ करना चाहते हैं. उन्हें याद है कि साधू बाबा चाहते थे कि गेहलौर प्रखंड बन जाये, अब लोग उनके इस सपने को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. गेहलौर में साधू बाबा के नाम पर जो स्मारक बना है, वहां का पुजारी भागीरथ मांझी(बाबा के पुत्र) को बनाने की पूरी तैयारी है, कहते हैं, बेचारा चल फिर नहीं पाता है, मेहनत मजूरी कैसे करेगा. सरकार अगर वादा पूरा करते हुए पांच एकड़ जमीन दे देती तो इसका थोड़ा भला हो जाता. मगर कोई बात नहीं समाधि स्थल पर बैठेगा तो कुछ न कुछ चढ़ावा मिल ही जायेगा.
सरकार के खिलाफ लोगों में जबरदस्त गुस्सा है, गनीमत है कि रामविलास पासवान जी को यह सूचना नहीं मिली है. मुख्यमंत्री महोदय को तो सूचना मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता, वे आजकल कान में ठेपी लगाकर राज करते हैं. खैर, यहां लोग चप्पल नहीं चलायेंगे इस बात की पूरी गारंटी है. (इस संबंध में एक खबर पंचायतनामा में भी प्रकाशित हुई है)
                                                                               

द्रोण ने एकलव्य से गुरू दक्षिणा मेँ एकलव्य के दाएँ हाथ का अगूंठा मांगा



जन्म - महाभारत काल मृत्यु - यदुवंशी श्रीकृष्ण द्वारा छल से पिता - महाराज हिरण्यधनु माता - रानी सुलेखा बचपन का नाम - अभिद्युम्न ( अभय ) जीवन से शिक्षा -1. अपने लक्ष्य के प्रति लगन होना 2. समस्याओँ से डट कर सामना करना 3. माता पिता और गुरू का आदर करना 4. मन लगाकर परिश्रम करना यदपि  एकलव्य निषाद वंश के राजा थे l निषाद वंश या जाति के संबंध मेँ सर्वप्रथम उल्लेख "तैत्तरीय संहिता" मेँ मिलता है जिसमेँ अनार्योँ के अंतर्गत निषाद आता है l
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एतरेय ब्राह्मण" ग्रन्थ उन्हेँ क्रूर कर्मा कहता है और सामाजिक दृष्टि से निषाद को शूद्र मानता है l
महाभारत काल मेँ प्रयाग (इलाहाबाद) के तटवर्ती प्रदेश मेँ सुदूर तक फैला श्रृंगवेरपुर राज्य एकलव्य के पिता निषादराज हिरण्यधनु का था l गंगा के तट पर अवस्थित श्रृंगवेरपुर उसकी सुदृढ़ राजधानी थी l उस समय श्रृंगवेरपुर राज्य की शक्ति मगध, हस्तिनापुर, मथुरा, चेदि और चन्देरी आदि बड़े राज्योँ के समकक्ष थी l निषाद हिरण्यधनु और उनके सेनापति गिरिबीर की वीरता विख्यात थी l
निषादराज हिरण्यधनु और रानी सुलेखा के स्नेहांचल से जनता सुखी व सम्पन्न थी l राजा राज्य का संचालन आमात्य (मंत्रि) परिषद की सहायता से करता था l निषादराज हिरण्यधनु को रानी सुलेखा द्वारा एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम "अभिद्युम्न" रखा गया l प्राय: लोग उसे "अभय" नाम से बुलाते थे l पाँच वर्ष की आयु मेँ एकलव्य की शिक्षा की व्यवस्था कुलीय गुरूकुल मेँ की गई l
बालपन से ही अस्त्र शस्त्र विद्या मेँ बालक की लगन और एकनिष्ठता को देखते हुए गुरू ने बालक का नाम "एकलव्य" संबोधित किया l एकलव्य के युवा होने पर उसका विवाह हिरण्यधनु ने अपने एक निषाद मित्र की कन्या सुणीता से करा दियाl एकलव्य धनुर्विद्या की उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहता था l उस समय धनुर्विद्या मेँ गुरू द्रोण की ख्याति थी l पर वे केवल ब्राह्मण तथा क्षत्रिय वर्ग को ही शिक्षा देते थे और शूद्रोँ को शिक्षा देने के कट्टर विरोधी थे l महाराज हिरण्यधनु ने एकलव्य को काफी समझाया कि द्रोण तुम्हे शिक्षा नहीँ देँगेl पर एकलव्य ने पिता को मनाया कि उनकी शस्त्र विद्या से प्रभावित होकर आचार्य द्रोण स्वयं उसे अपना शिष्य बना लेँगेlपर एकलव्य का सोचना सही न था - द्रोण ने दुत्तकार कर उसे आश्रम से भगा दियाl
            एकलव्य हार मानने वालोँ मेँ से न था और बिना शस्त्र शिक्षा प्राप्त तिए वह घर वापस लौटना नहीँ चाहता थाल एकलव्य ने वन मेँ आचार्य द्रोण की एक प्रतिमा बनायी और धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगाl शीघ्र ही उसने धनुर्विद्या मेँ निपुणता प्राप्त कर ली l एक बार द्रोणाचार्य अपने शिष्योँ और एक कुत्ते के साथ उसी वन मेँ आएl उस समय एकलव्य धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहे थेl कुत्ता एकलव्य को देख भौकने लगाl एकलव्य ने कुत्ते के मुख को अपने बाणोँ से बंद कर दियाl कुत्ता द्रोण के पास भागाl द्रोण और शिष्य ऐसी श्रेष्ठ धनुर्विद्या देख आश्चर्य मेँ पड़ गए| वे उस महान धुनर्धर की खोज मेँ लग गए अचानक उन्हे एकलव्य दिखाई दिया जिस धनुर्विद्या को वे केवल क्षत्रिय और ब्राह्मणोँ तक सीमित रखना चाहते थे उसे शूद्रोँ के हाथोँ मेँ जाता देख उन्हेँ चिँता होने लगीl तभी उन्हे अर्जुन को संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के वचन की याद आयी| द्रोण ने एकलव्य से पूछा- तुमने यह धनुर्विद्या किससे सीखी? एकलव्य- आपसे आचार्य एकलव्य ने द्रोण की मिट्टी की बनी प्रतिमा की ओर इशारा कियाल द्रोण ने एकलव्य से गुरू दक्षिणा मेँ एकलव्य के दाएँ हाथ का अगूंठा मांगा एकलव्य ने अपना अगूंठा काट कर गुरु द्रोण को अर्पित कर दिया l
कुमार एकलव्य अंगुष्ठ बलिदान के बाद पिता हिरण्यधनु के पास चला आता है l एकलव्य अपने साधनापूर्ण कौशल से बिना अंगूठे के धनुर्विद्या मेँ पुन: दक्षता प्राप्त कर लेता है| आज के युग मेँ आयोजित होने वाली सभी तीरंदाजी प्रतियोगिताओँ मेँ अंगूठे का प्रयोग नहीँ होता है, अत: एकलव्य को आधुनिक तीरंदाजी का जनक कहना उचित होगा |
 पिता की मृत्यु के बाद वह श्रृंगबेर राज्य का शासक बनता हैl अमात्य परिषद की मंत्रणा से वह न केवल अपने राज्य का संचालन करता है, बल्कि निषाद भीलोँ की एक सशक्त सेना और नौसेना गठित करता है और अपने राज्य की सीमाओँ का विस्तार करता है| इस बीच मथुरा नरेश कंस के वध के बाद, कंस के संबंधी मगध नरेश जरासन्ध शिशुपाल आदि के संयुक्त हमलोँ से भयभीत श्रीकृष्ण मथुरा से अपने भाई बलराम व बंधु बांधवोँ सहित पश्चिम की ओर भाग रहे थे|
 तब निषादराज एकलव्य ने श्रीकृष्ण की याचना पर तरस खाकर उन्हेँ सहारा व शरण दियाl ( अधिक जानकारी के लिए पेरियार ललई सिँह यादव द्वारा लिखित एकलव्य नामक पुस्तक पढ़ेँ )एकलव्य की मदद से यादव सागर तट पर सुरक्षित भूभाग द्वारिका मेँ बस गएl
यदुकुल ने धीरे धीरे अपनी शक्तियोँ का विस्तार किया और यादवोँ ने सुरापायी बलराम के नेतृत्व मेँ निषादराज की सीमाओँ पर कब्जा करना प्रारम्भ कर दियाl इसी बीच श्रीकृष्ण ने अपनी नारायणी सेना (प्रच्छन्न युद्ध की गुरिल्ला सेना) भी गठित कर ली थीlअब यादवी सेना और निषादोँ के बीच युद्ध होना निश्चित था| यादवी सेना के निरंतर हो रहे हमलोँ को दबाने के लिए एकलव्य ने सेनापति गिरिबीर के नेतृत्व मेँ कई बार सेनाएँ भेजीँl पर यादवी सेनाओँ का दबाव बढ़ता जाता है| तब एकलव्य स्वयं सेना सहित यादवी सेना से युद्ध करने के लिए प्रस्थान करते है | बलराम और एकलव्य की सेना मेँ भयंकर युद्ध होता है और बलराम की पराजय होती है| बलराम और यादवी सेना को पराजित कर एकलव्य विजय दुंदुभी बजाते हैँ, तभी पीछे से अचानक कृष्ण की नारायणी सेना जो कहीँ बाहर से युद्ध कर लौटी थी, एकलव्य पर टूट पड़ती है| एकलव्य इस अप्रत्याशित हमले से घिरकर रक्तरंजित हो जाते हैँ l ऐसी ही विकट स्थिति मेँ कृष्ण के हाथोँ महाबली एकलव्य का वध होता है | अपने महानायक एकलव्य की कृष्ण के हाथोँ मृत्यु से निषाद क्षुब्ध होते हैँ l यदुकुल पतन के बाद उन्हीँ मेँ से एक निषादवीर के द्वारा कृष्ण की हत्या कर दी गई l
  इतना ही नहीँ यादवी विनाश के बाद जब श्रीकृष्ण के निर्देशानुसार शेष बचे यदुवंशीय परिवारोँ को लेकर अर्जुन द्वारिका से हस्तिनापुर जा रहे थे | तब बदले की भावना से निषाद-भीलोँ की सेना ने वन पथ मेँ घेरकर भीषण मारकाट मचाई और अर्जुन को पराजित कर पुरूषोँ को बन्दी बना लिया | साथ ही यदुवंश की सुन्दरियोँ-गोपियोँ का अपहरण कर लिया l
" भीलन लूटी गोपिका, ओई अर्जुन ओई बाण ll "
                                 
                                                                    - आशाराम निषाद