आजादी के आखरी दशक में देशभर में राजनैतिक और सामाजिक
गतिविधियाँ काफी तेजी से प्रारम्भ हो
गई थीं। 100 वर्षों की स्वतंत्रता
संग्राम के चलते अंग्रेजों के देश
छोड़कर जाने के आसार दिखने लगे थे। वहीं सिखस्थान की मांग मास्टर तारासिंह उठा रहे थें। आदिवासी बहुल
क्षेत्रों में भी उत्तर पूर्व में डा0 जे ड.ए. किंजों नागालेंड की मांग कर रहे
थे। मिजोरम में लाल डेगा, डा0
जयपाल
सिंह पृथक झारखंड गणतंत्र
की मांग लेकर चल पड़े थे। देश के पिछडे
आदिवासी निषाद (भोई) समुदाय भी
आन्दोलित हो रहा था, तब भोपाल स्टेट के डा0 इन्द्रजीत सिंह ने आल इंडिया कहार महासभा
की जनरल मिटिंग में प्रस्ताव पारित किया |
जिसके माध्यम से पृथक कहारस्थान की
मांग तात्कालिक लार्ड पेथिक लारेन्स (ब्रिटिश केबिनेट मिशन लंदन) वायसराय
दिल्ली को मेंमोरन्डम महासभा द्वारा दिनांक
20/04/1946 को
दिया गया। सिख धर्म के उत्थान में कहार समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। इस कारण पंजाब के
सामाजिक नेताओं ने
कहारस्थान पर भारी जोर दिया। जिस समय
कांग्रेस आंदोलनों के फल-स्वरूप
साइमन कमीशन भारत आया था, उस समय हमारे नेताओं जिनमें डा0 इन्द्रजीत सिंह के साथ श्री महावीर
प्रसाद , श्री दुर्गादत्तसिंह
कुशन बिजनौर, श्री गुलजारी मल जी बाथम पीलीभीत आदि बुद्विजीवी समाज के नेता थें, उन्होंने देश की स्वतंत्रता के समय
कहारस्थान की मांग की थी। इस
कारण देश के दूसरे प्रातों में भी कुछ इस प्रकार की मांगें उठी थी। छूत एवं अछूत का प्रश्न
भी गर्माहट के साथ उठा था। यह प्रश्न बाबा साहेब अबेँडकर ने उठाया था। जिस समय समाज का प्रबुद्ध वर्ग
जाति का नाम बताने में लज्जा
अनुभव करता था, उस समय डा0 इन्द्रजीत सिंह जी ने सार्वजनिक मञ्च से कहार महासभा का झंडा
उठाया था, जिसमें निषाद महासभा
का यथा संभव सहयोग मिला
था। इसी समय लगभग सन 1930-31 में होंशंगाबाद में बाबू गुलाबसिंह जी की अध्यक्षता में कहार
सम्मेलन का वृहद् आयोजन किया गया था, जिसमें भोपाल सहित देश के विभिन्न
प्रान्तों से आए नवयुवकों ने स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया था, डा0
सहाब
समाज को संगठित करने, उनकी समस्याओं को अखिल भारतीय स्तर पर ब्रिटिश तथा स्थानीय शासन के
सामने नियमित रूप से रखते रहे। राजनीति के मञ्च पर
विशेष रूचि के साथ उन्होंने सन 1945 के पश्चात भाग लिया, भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के समय ही हमारे नेताओं को अनुमान हो गया था कि
स्वतंत्रता के पश्चात हमारे समाज के
साथ
न्याय नहीं किया जायेगा । इसी कारण कहारस्थान की मांग की गई थी, मास्टर तारा सिंह जी ने भी
खालिस्तान मांगा था। सन् 1946 में देश की अन्तरिम
सरकार बनी थी तब लाहौर से
प्रकाशित डान अखबार ने एक कार्टून छापा था,
नीचे
लिखा था, पंडित नेहरू वरूण देवें के दरबार में
अर्थात अन्तरिम सरकार में हमारे समाज का प्रतिनिधि
लेने की बात चल रही थी। कांग्रेस के द्वारा आश्वासन देने पर समाज ने भारत स्वतंत्रता के पक्ष में
कहारस्थान की मांग वापस ले ली थी। इस समय समाज को
गोत्रों के आधार पर संगठित करने के प्रयास त्याग दिया था, क्योंकि भारत में भिन्न भिन्न प्रदेशों
में अनेंकों गोत्र, उपजातियां हैं, इसी समय समाज का पत्र कर्णधार का
प्रकाशन भोपाल से किया,पश्चात् उसका प्रकाशन एक प्रकाशन मंडल बनाकर झांसी से प्रकाशित किया गया, जिसके मुख्य प्रकाशक श्रीसुन्दरलाल जी रायकवार
थे।निषाद समुदाय की राजनीतिक गति विधयों का प्रमुख केन्द्र भोपाल रहा, ओर राजनैतिक चेतना का केन्द्र बिन्दु
अखिल भारतीय निषाद समाज का
कर्णधार रहा है।
-सुदीप शंकर डोङिया
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