Sunday, 11 November 2012

ओ मांझी रे, अपना किनारा, नदिया की धारा है



ओ मांझी रे,  अपना किनारा,  नदिया की धारा है
ओ मांझी रे ...



साहिलों पे बहने वाले
कभी सुना तो होगा कहीं, ओ ...
हो,  कागज़ों की कश्तियों का
कहीं किनारा होता नहीं
हो मांझी रे ... मांझी रे
कोई किनारा जो किनारे से मिले वो,
अपना किनारा है ...
ओ मांझी रे ...


पानियों में बह रहे हैं
कई किनारे टूटे हुए ओ ...
हो, रास्तों में मिल गए हैं   
सभी सहारे छूटे हुए ...
कोइ सहारा मझधारे में मिले वो,
अपना सहारा है ...

ओ मांझी रे,  अपना किनारा,  नदिया की धारा है
ओ मांझी रे ...
                                          - गुलज़ार

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