सरकार चाहे तो मछुआ समुदाय को आरक्षण दे सकती है
उत्तर प्रदेश
सरकार चाहे तो मछुआ समुदाय की पिछड़ी जातियों को बिना केंद्र सरकार की
मंजूरी के SC आरक्षण दे सकती है । इस दिशा में स्वयं
गृहमंत्रालय ने बाकायदा आदेश जारी कर रखा है । सुप्रीम
कोर्ट द्वारा निर्णीत भैय्या राम मुंडा बनाम अनिरुद्ध पटार केस के बाद
गृहमंत्रालय ने बाकायदा आदेश जारी कर कहा
था राज्यों की उन सभी SC जातियों
की समनामी ,समवाची , पर्यायवाची जातियां
, जो किसी कारण वश SC सूची
में शामिल होने से रह गयी हैं,
उन्हें भी उसी
SC जाति में परिभाषित मानी जायेंगा । उड़ीसा राज्य की SC सूची
में DEWAR शब्द 1950 से
दर्ज है । तमाम कोशिशों के बाद भी यह पता नहीं चल पाया की वास्तव में
यह कौन जाति है ?
1978 में
नारायण बेहरा बनाम उड़ीसा सरकार के निर्णय में
स्पष्ट हुआ कि वास्तव् में dewar शब्द
ही धीवर है , और इसके प्रर्यायवाची के रूप में धीबरा
, केऊटा ,कैबर्ता आदि
हैं । केंद्र सरकार के आदेश पर उड़ीसा सरकार ने dewar नाम
से धीबरा , केऊटा ,कैबर्ता
आदि को आरक्षण दिया .लेकिन पड़ोस के ही मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ
में आज भी इस आदेश की कोई पूछ नहीं है । इस देश में दो क़ानून सिर्फ
हमारे लिए ही हैं । भारत की
जनगणना 1931 में प्रकाशित untouchable एंड
depressed जातियों का विवरण पेज
634 पर दिया है जिसमे क्रम 8 पर
मझवार जाति के समक्ष Majhwar (Manjhi ) लिखा
है.
स्पष्ट है कि मझवार और मांझी जातियां एक है । विलियम
क्रूक साहब ने 1891 की जनगणना के आधार पर 1896 में ट्राइब & कास्ट्स
आफ नार्थ वेस्ट इंडिया में मझवार जाति का विवरण दिया है
जिसमे मझवार के साथ मांझी का भी उल्लेख है । भारत सरकार ने 1961 की
जनगणना में चमार की 51 उप
जातियों को चमार के साथ माना है. इसी
आदेश में
मझवार के पर्यायवाची के रूप में पेज संख्या 46 में क्रम
संख्या 51 पर मांझी
, केवट, मल्लाह
,राजगोंड , गोंड
मझवार , मुजबिर या मुजाबिर दर्ज है जो
स्वयंमेव घोषित करता है कि मझवार जाति मल्लाहों की जाति है
।
अब सवाल ये है कि यदि
मझवार शब्द का तात्पर्य मांझी है तो मांझी का तात्पर्य केवट , मल्लाह
दुनिया के हर शब्द कोष में में लिखा है तो सरकार उसे मझवार के आगे क्यों
दर्ज नहीं करती ।ये भेदभाव मल्लाह मांझी के साथ ही क्यों ? स्वजाति
के मोह में दूसरी जातियों को आरक्षण से वंचित करने वाले कहीं और नहीं
बल्कि मंत्रालयों में बैठे है । ये आरोप नहीं बल्कि हकीकत है । और इसे प्रमाणित
भी किया जा सकता है । सब जानते हैं कि संविधान अनुसूचित जाति आदेश
1950 में संशोधन की बहुत लम्बी प्रक्रिया
हैं ,जिसे SC
/STSR&T I के शोध के पश्चात् राज्यसरकार की सबल
संस्तुति , तत्पश्चात NCSC / NCST /
RGI आदि की हाँ के पश्चात गृहमंत्रालय ,अधिकारिता
मंत्रालय, कैबिनेट समिति से होता
हुआ संसद तक जाना होता है । वहां लम्बी बहस होती है , पास
हुआ तो ठीक वर्ना वोटिंग में सरकार गिर भी
सकती है । अब भला कोई सरकार इतना जोखिम क्यों लेगी ? दूसरों
को सशक्त करने के चक्कर कोई सरकार कमजोर क्यों होना चाहेगी
?
इसके
लिए हमारे सरकारी दफ्तरों में एक ढर्रा है लिपकीय त्रुटि
। लिपकीय त्रुटि के जरिये अच्छे अच्छे आदेशों को पलीता लगाया जा सकता
है । एक बार गलत आदेश जान बूझ कर जारी कर दिया जाता है उसके बाद उसका अनुपालन
करने वालों की लम्बी फौज बैठी रहती है जो हर हाल में अपना काम कर दिखाती
है ।
उदाहरणार्थ
संविधान अनुसूचित आदेश 1950, संशोधन
आदेश 1976 में मध्य प्रदेश में क्रम 35 पर
स्पष्टतः Kumhar जाति अंकित है जो 2002 आते
अपने आप Kumar हो गयी । अब
चूँकि Kumar जाति का आदेश आ गया तो मध्यप्रदेश के
आठ जिलों में बेचारे कुम्हार अपना चाक गिरेबाँ में लटकाये
अपना गिरेबाँ चाक किये डालते थे लेकिन किसी का भी दिल नहीं पसीजा । नतीजतन
आठों जनपदों में कुम्हार जाति के SC प्रमाण
पत्र बंद हो गए । बिना कुछ किये संविधान संशोधन हो गया । हर्र लगी न फिटकरी रंग चोखा । इति सिद्धम ।
उदाहरणार्थ
उडीसा में नारायण बेहरा बनाम उडीसा सरकार 1978 के
मामले में केंद्र सरकार ने 23 मई 1981 को
पत्रांक BC 12016/22/80-SC & BCD -IV के
माध्यम से DEWAR जाति के आगे धीबरा ,केऊटा
और कैबर्ता लिखने का आदेश दिया ,लेकिन बाबूशाही
और उनका स्वजातवाद हावी रहा । नतीजतन उडीसा में क्रम सँ 24 पर
तो DEWAR जाति के आगे धीबरा ,केऊटा
और कैबर्ता लिखा गया । लेकिन मध्य प्रदेश और
उससे निकले छत्तीसगढ़ के क्रम सँ 19 को
छोड़ दिया गया गया । बाबू कहते हैं उडीसा वालों ने 31 साल
मुकदमा लड़ा । आपको क्या ऐसे ही फ्री में दे दें । जाकर
मध्य प्रदेश /छतीसगढ़ के लिए दोबारा 31 साल
मुकदमा लड़ो ।
उदाहरणार्थ उत्तर प्रदेश में 1961
,2002 में धुरिया जाति का आदेश निकालते समय Dhuriya शब्द
का कचूमर निकाल दिया गया । इसकी स्पेलिंग कभी भी शुद्ध नहीं लिखी गयी कभी
Thuriya , कभी थुरीबा लिखा गया । परिणाम स्वरुप
धुरिया जाति कहीं की नहीं रही । उदाहरणार्थ जन गणना 1961 में वर्णित
अनुसूचित जातियों की सूची में कहार की उपजाति दलेरे को जानबूझ कर दलेसे
Dalesey लिख दिया । परिणाम स्वरुप दलेरा जाति
आरक्षण से वंचित हो गयी । दुर्भाग्य
पूर्ण रहा कि ये आदेश भारत के किसी भी राज्य में पूरी तरह से लागू नहीं हुआ । आज भी पूरा देश इससे वंचित है
। सरकार में बैठने वाले अल्पशिक्षित नुमाइंदे इसे आज तक
समझ नहीं पाए
By- Arun Kumar Turaiha
Thanks for sharing Mukesh ji
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं सारगर्भित प्रस्तुति। धन्यवाद अरुण जी !💐
ReplyDeleteExcellent Article !
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteThanks
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