Sunday, 11 November 2012

नई शताब्दी में निषाद समाज का मूल्यांकन

नई शताब्दी में निषाद समाज का मूल्यांकन             
दोस्तों हमारा निषाद समाज आज इतना पिछड़ा हुआ है. इसके पीछे कोई एक या दो कारण मात्र नहीं हो सकते. किसी भी समाज के उत्थान या पतन के पीछे कई कारणों का हाथ होता है. नई शताब्दी में निषाद समाज का मूल्यांकन किया जाना चाहिए. आज हम नई सदी की दलहीज पर खड़ें हैं. नई सदी हमारे समाज के लिए कैसी हो सकती है ? पिछली पूरी सदी समाज सुधारों की विफलता की सदी कही जा सकती है.
नई सदी में निषाद समाज के समक्ष वास्तव में गंभीर चुनौतियाँ हर क्षेत्र में हैं. विशेष रूप से राजनीति, अर्थ और संस्कृति की चर्चा करना चाहूँगा, बात राजनीत से शुरू करना चाहूँगा जिस प्रकार से निषाद समाज राजनैतिक अधिकारों से आज तक वंचित है, निषाद समुदाय की राजनीति, सत्ता, दिशा और नेतृत्वविहीन है. आज राष्ट्रीय नेतृत्व में मछुआ समुदाय की उपस्थिति दयनीय है.
धर्म शास्त्र का अध्ययन और मूल्याकंन किया जाये तो आप देख सकते हैं कि धर्म शास्त्र जो दैविक वस्तुओं से सम्बन्धित प्रवचन है. धर्म शास्त्र विभिन्न प्रकार के होते हैं. जैसे पौराणिक धर्मशास्त्र, नागरिक धर्मशास्त्र, प्राकृतिक धर्मशास्त्र आदि है, जो जगत की व्यवस्था करता है और प्रत्येक को कर्मानुसार दंड और पुरस्कार प्रदान करता है. आज इन धर्मशास्त्रों में तलाशने की जरूरत है कि किस प्रकार के धर्मशास्त्रों को अपना आधार बनाना है या हमारे समाज के महापुरुषों को आधार मान कर धर्म मान लेने की जरूरत है ? आप निषाद समाज को किस रूप में देखना चाहते हैं ? क्या निषाद समाज धर्म में कोई आपना आधार चुन सकता है या किसी के सहारे से आगे बढ़ सकता है ? 
निषाद समुदाय के इतिहास पर नजर डाली जाये तो भील्ल शब्द का तात्पर्य भील-बिल भेदने की धातु की प्रक्रिया से है और यह शब्द महाभारत, रामायण में निषाद के लिए प्रयुक्त किया गया था. भील शब्द 600 ई से प्रयोग में आया. इससे पहले वनपुत्र, पुलिन्द आदि नाम से जाना जाता था. कुछ विद्वानों का मानना है कि भील को संस्कृत भाषा में म्लेच्छ के रूप में प्रयोग किया गया है. भागवत पुराण में इन्हें वेणराज की संतान के रूप में उल्लेख मिलता है. महाभारत में एकलव्य की कथा अंकित है. लेकिन आज निषाद समाज को विभिन्न जातियों के रूप में मौजूद हैं जैसे- केवट,  मांझी, बिंद, मल्लाह, कश्यप, रायकवार, कहार, गौंड, आदि के रूप में देखने और सुनने को हर जगह मिल जायेंगे. लेकिन आज तक ये समुदाय सही से अपना इतिहास नहीं बना पाया है. इसलिए दूसरे समुदाय के लोग अपने हिसाब से इतिहास बता कर रोटी सेंक लेते हैं.
 निषाद समाज का आधुनिकता में मूल्याकंन किया जाये तो ये समाज परम्परा और रूढ़ियों में इस तरह से जकड़ दिया गया हैं कि वह आज यह नहीं समझ नहीं पा रहा है कि आधुनिकता में जी रहे हैं या उत्तराधुनिकता में. आज इस समाज के सामने हजारों सवाल हैं. परम्परा के रूप में हमारे समाज को बाँध के रखा गया है. निषाद समाज में ज्यादा सुनने को मिलता है कि  त्रेता के बाद द्रपर फिर कलयुग आएगा और आज तक कलयुग चल रहा है ये आप को सुनने को मिलता रहता है. ये परम्परा जो ब्राह्मनों ने रची है. समाज को यह पता नहीं कि हर पाच या दस साल में परिवर्तन होता रहता है जैसे- आज आधुनिकता के बाद उत्तर आधुनिकता और फिर उत्तर संरचना आधुनिकता में आज समाज चल रहा है. आज भी हमारा समाज कलयुग और त्रेता के चक्कर में पड़ा है. जब देश आजाद नहीं हुआ था, हमारे समाज की स्थिति क्या थी ? फिर अंग्रेजों ने भी भारत के परम्पराओं को छूने के काम नहीं किया क्योंकि 1857 की क्रान्ति में मंगल पांडे ने गाय की चर्बी का किस तरह से विरोध किया था. इसी डर से अंग्रेजों ने परम्पराओं को छूने को कोशिश नहीं की. इस तरह से मानव अध्ययन को शुरू कराया जिसे समाज विरोध न करे. इस तरह से निषाद समाज का आज मानव अध्ययन इसी के आधार पर किया जाता है, उसी के आधार पर सरकार समाज को संचालित करने का काम करती है. क्या किया जाय की निषाद समाज न विद्रोह करे, न आदोलन करे, इन सब गतिविधियों पर ध्यान रखा जाता है. निषाद समाज आपनी परम्पराओं से बाहर निकले और आज के समाज में अपने बच्चे, स्त्रियों को रख कर देखे कहाँ है हमारा समाज. आधुनिकता, उत्तर आधुनिकता आदि को जानने के कोशिश करे जो लगभग हर समाज को जीने का एक नया जीवन दिया है. आज सामाजिक स्तर पर बदलाव और अपने अधिकार फिर से लेने की कोशिश करे दूसरे की न सुने, अपनी सुने और अपना अधिकार लेने के कोशिश करे.
आज निषाद समाज गरीबी, भुखमरी, शोषण जैसी तमाम परिस्थितियों से गुजर रहा है. इसका देखने-सुनने वाला कोई नहीं है. आज इस समाज को हर तरह से लूटने का काम किया जा रहा है जैसे- राजनीति करके, अशिक्षित करके, भूमहीन बनाकर, मजदूर बनाकर, जिसको जिस तरह मिल रहा है वह वैसे ही लूटने का काम कर रहा है. निषाद समाज एक हो अपना अधिकार जाने और जो सामाजिक अधिकार दिया जाये, उसे लेने का काम करे. ये तभी संभव है जब निषाद समाज एक होगा. तब तक एक मंच के तहत यह नहीं होगा जब तक हर कोई अपने-अपने तरीके से लूटने का काम करेगा और निषाद समाज लुटता रहेगा. निषाद समाज अपना अधिकार जाने, एक हो और एक मंच बने और अपना वर्चस्व फिर से कायम करे.
                                                                                                                                                                                                                 -बलराम बिन्द

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