Tuesday, 26 March 2013

पुनर्जागरण : मछुआ समुदाय की एकता का सूत्र

साथियो,
आज हमारा समाज कठिन दौर से गुजर रहा है. चारो तरफ हताशा, निराशा, अराजकता का माहौल पैदा हो गया है. ऐसे दौर में समाज को दिशा देने के लिए किसी न किसी मसीहा और अवतार के आने का इन्तजार हो रहा है. विकल्प की तलाश जारी है. 20 करोड़ से भी ज्यादा की बड़ी आबादी वाला समाज सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक उपेक्षाओं का शिकार हो रहा है. नेतृत्वविहीन मछुआ समुदाय शोषण और उत्पीड़न की चरम अवस्था तक पहुँच चुका है. हालाँकि समुदाय की एकता स्थापित करने के लिए अनेको राजनीतिक दलों एवं  सामाजिक संगठन कई दशकों से प्रयास कर रहे हैं. लेकिन आंशिक सफलता के आलावा समाज को कुछ नहीं मिला.
पिछले कई वर्षों से राष्ट्रीय स्तर पर एकता स्थापित करने के लिए अनेकों प्रयास किए गये. ये प्रयास आज भी जारी है लेकिन दिशाहीन और विकल्पहीनता के कारण असफल हो रहे हैं. कई संगठनों और पार्टियों ने बड़े दावों के साथ लाखों की संख्या में मछुआ समुदाय को एकत्रित करने की घोषणा की लेकिन सभी धरना प्रदर्शनों में जनसमुदाय नहीं पहुँच पाया. देखने में आया है कि समाज के तथाकथित नेता ही समाज के लोगों को धिक्कारने लगते हैं कि हमारे समाज के लोग ही साथ नहीं दे पाते हैं. यहाँ तक समाज के नेता अपने ही समाज के लोगों को गाली देने से भी पीछे नहीं हटते.
पिछले आन्दोलन के नतीजों पर कोई भी संगठन या नेता पुनर्विचार नहीं करता कि हम असफल क्यों हुए ? बस यही कहते है कि समाज में एकता नहीं है. अब मछुआ समाज की एकता और जागरूकता के सवाल को देश के तमाम संगठनो ने उठाया और संवाद स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन किसी के पास समाज को जागरुक करने के लिये कोई भी कार्यक्रम नहीं है, जिससे मछुआ समुदाय की चेतना को विकसित किया जा सके. जबकि बड़ी संख्या में आम जनता एक होना चाहती है लेकिन उनके सामने कोई विकल्प नहीं है. लोगों ने हमे समझाया कि पिछले 50 वर्षों से हम समाज के लिए काम कर रहे हैं आगे भी करते रहेंगे, लेकिन अब ऐसा लगता है अपना समाज कभी एक नहीं हो सकता. इस प्रकार की निराशाजनक प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है.
मछुआ समुदाय की एकता के लिए इतिहास में अब तक जिस प्रकार के कार्य किये गये हैं. उन सभी का हमे अध्ययन करना चाहिए.मछुआ समुदाय की एकता और जागरूकता के लिए इतिहास में देश भर के सभी व्यक्तियों, संगठनों, राजनीतिक पार्टियों के द्वारा निम्न कार्यक्रम किये गये है जो इस प्रकार हैं – एक जाति शब्द का चुनाव करने का अभियान, राजनीतिक आन्दोलन (आरक्षण), परिचय सम्मेलन, धार्मिक अनुष्ठान व सामाजिक सेवा, धर्मशाला बनाना, मंदिर बनाना आदि. उपरोक्त कार्यक्रमों द्वारा ही इतिहास में समाज की एकता और जागरूकता के लिए किये गये थे.
इतिहास में किये गये तमाम तरह के प्रयासों का ऐतिहासिक वैज्ञानिक पद्धति द्वारा विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि इतिहास में इन सभी कार्यों की उस दौर में खास आवश्यकता थी जो समाज की जागरूकता और एकता की खास मंजिल थी. जिसकी भूमिका का महत्व कम नहीं है. आज हम जिस मंजिल पर आ पहुंचे हैं. इन कार्यों के बिना सम्भव नहीं थी. ये कार्य सांगठनिक कार्यक्रमों को प्रस्तुत करने के लिए रूटीनी कार्य है.
अब हम इस बात को एक उदहारण से समझते हैं. मान लीजिए कि एक व्यक्ति सुबह से शाम तक अपने रोजमर्रा के काम करता है. जैसे- पूजा पाठ, खाना, नौकरी करना, घर-परिवार आदि यदि हम किसी एक काम पर बहुत जोर दे देते हैं तो पूरे दिन का रूटीन कार्य भी प्रभावित होता है. इसी तरह समाज को विकसित करने के लिए सभी कार्यों की आवश्यकता होती है. रूटीनी कार्यों को जागरूकता और एकता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है, लेकिन हम यह नहीं कहना चाहते कि पूर्व में जो कार्य हुए उनसे समाज का कोई फायदा नहीं हुआ. आज हम जिस नतीजे पर पहुंचे हैं ये पूर्व किये गये कार्यों का नतीजा है. अब तक जो कार्य हो चुके हैं उनसे आगे बढने की आवश्यकता है.
आधुनिक युग में, समाज के बुद्धिजीवियों, व्यक्तियों, संगठनों और पार्टियों द्वारा समाज की एकता और जागरूकता के लिए जिन उपायों पर काम किया जा रहा है. घूम फिर कर वही कार्य हैं जो पिछले 50 वर्षों से लोग कर रहे हैं. अब ये कार्य और भी बड़े पैमाने पर होने लगे. इस प्रकार हम देखते हैं कि तमाम प्रयासों के बावजूद भी समाज विभिन्न टुकडों में बिखर गया है. मछुआ समुदाय सैकड़ों संगठनों और पार्टियों में बट कर अपने अस्मिता की लड़ाई लड़ने की कोशिश कर रहा है.
अब सवाल उठता है कि क्या करें ? हम आपसे एकदम साफ़ कह देना चाहते हैं कि समाज की एकता स्थापित करने का कोई भी शोर्टकट रास्ता नहीं है. अब वैचारिक आधार पर काम करना बाकी है. आज हमारी लड़ाई अस्मिता तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए. अस्मिता और अस्तित्व दोनों संघर्षों को साथ-साथ चलाना पड़ेगा. विचारधारा के रूप में सैद्धान्तिक, वैचारिक पक्ष को जनता में स्थापित करना पड़ेगा.
इतिहास का पूर्वालोकन करने के उपरांत हमारा यह ऐतिहासिक दायित्व बनता है कि समाज की जिस मंजिल पर हम पहुँच चुके है उसका सही मुल्यांकन किया जाये, उसी के आधार ऐतिहासिक कार्यभार को पूरा करने की आवश्यकता है.
आज समाज में पुनर्जागरण की आवश्यकता है. यही आज के दौर का कार्यभार है. पुनर्जागरण के बिना आप किसी भी एकता की कल्पना नहीं कर सकते हैं. हमें मिलकर इस कार्यभार को उठाना है. यह कार्यभार वही व्यक्ति कर सकता है जो समाज की चेतना को उन्नत करना चाहता है.
पुनर्जागरण से हमारा तात्पर्य क्या है ? पुनर्जागरण का अर्थ होता है – फिर से जगाना, सोये हुए को फिर से जगाना. अर्थात “अपनी प्राचीनता को समझते हुए अस्मिता और अस्तित्व के संघर्षों को कला, विज्ञान, साहित्य द्वारा नये सिरे से अनुसंधान और प्रचार करना, ज्ञान-विज्ञान का विस्तार करना तथा समाज में वैज्ञानिक नजरिए को स्थापित करना ही पुनर्जागरण कहलाता है.
पुनर्जागरण एक सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक आन्दोलन है. जो वर्तमान युग का प्रधान विषय होना चाहिए. पुनर्जागरण सामाजिक रूपांतरण में सांस्कृतिक, वैज्ञानिक आधार प्रदान करता है.
पुनर्जागरण हर सूरत में बेजान समाज को बदलने और उसमे जान डालकर समाज की मौलिक प्रतिभा में नये विचारो को देश काल की परिस्थितियों के अनुकूल विकसित करेगा. जब तक सैद्धान्तिक पक्ष मजबूत नहीं होगा तब तक व्यवहारिक रूप में समाज की तमाम तरह की एकता अस्थायी एकता होगी. विचारधारात्मक एकता को पुनर्जागरण द्वारा ही विकसित किया जा सकता है.
आज आशाजनक बात यह है कि समाज में अनेक बुद्धिजीवियों का ऐसा समूह पैदा हो गया है, जिन्हें समूची भारतीय स्थितियों की विसंगतियों का अहसास हो रहा है. नौजवानों की नई पीड़ी  अब कुछ कर गुजरना चाहती है. वे समाज को शोषण और उत्पीड़न से छुटकारा  दिलाना चाहते है. सबसे बड़ी बात यह है कि आम लोग भी इस परिवर्तन में शामिल होना चाहते  हैं.
आज का दौर चुनौतियों और परिवर्तन का दौर है. समाज की सृजनात्मक पहल और आंतरिक ऊर्जा के विस्फोट से नई राह निकाली जा सकती है. यह परिवर्तन तभी सम्भव है जब समाज में नई सांस्कृतिक चेतना पैदा की जाये. पुनर्जागरण को निर्णायक भूमिका में पहुँचाना पड़ेगा पुनर्जागरण को एक आन्दोलन एक मुहीम के रूप में जन-जन तक ले जाना पड़ेगा, तभी समाज में भटकाव की प्रवृतियों को दूर किया जा सकता है.
राजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक शुन्यता को, पुर्नजागरण द्वारा भरा जा सकता है. इसके द्वारा ही मछुआ समुदाय में सांस्कृतिक, वैज्ञानिक व राजनैतिक चेतना को विकसित किया जा सकता है. पुनर्जागरण को आर्थिक, राजनैतिक व सामाजिक बदलाव से अलग करके नहीं देखा जा सकता है. यह व्यक्ति और सामाजिक रूपांतरण का प्राथमिक पहलू है. जिसके अभाव में आप कोई भी कार्यक्रम सिर्फ सतही और दिग्भ्रमित करने के लिए या पद लोलूपता के लिए कर सकते हैं.
इतिहास गवाह है कि जब तक समाज में लोगों के विचारों में आमूलचूल परिवर्तन नहीं हुआ, तब तक समाज में कोई भी बड़ा बदलाव नहीं आया है. यूरोप के पुनर्जागरण से ही विज्ञान, अविष्कार, प्रगतिशील विचारों को बल मिल पाया और बौद्धिक सांस्कृतिक परिवेश का निर्माण हुआ. तभी यूरोप के लोग धर्म से ऊपर उठ कर सोचने लगे. व्यवहारिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण बना तब जाकर भारत और अमेरिका की खोज सम्भव हो पायी. नही तो कभी भी यह खोज सम्भव नहीं थी. प्राचीन यूनान के पुनर्जागरण ने मानवीय गौरवगाथा को स्थापित किया तो इतावली में मानवीय आदर्श स्थापित किये गये. जबकि जर्मन ने वैज्ञानिक उपलब्धियों के द्वारा भूगोल में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया.
मछुआ समुदाय विविधताओं वाला समाज है. समाज की एकता को स्थापित करने के लिए पुनर्जागरण हमारे दौर का प्राथमिक व अनिवार्य कार्य भार है.
अब सवाल उठता है कि पुनर्जागरण समाज के रूपांतरण में अपनी भूमिका कैसे निभायेगा. हम आप सभी को सुनिश्चित कर देना चाहते हैं कि पुनर्जागरण की शुरुआत सामाजिक कार्यवाहियों के दौरान लगातार श्रंखलाबद्ध तरीकों से नये आन्दोलन को चलाने की  आवश्यकता है. पुनर्जागरण के माध्यम से समाज में बढ़ रहे अलगाव, भटकाव, संक्रीनता, अहंकार, जड़सूत्रवाद, व्यक्तिवाद इत्यादि बुराइयों की जगह सृजनात्मक, सामूहिकता, संवेदनशीलता एवं मानवीय गुणों को स्थापित किया जायेगा. इतिहास बोध चेतना, सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत, ऐतिहासिक वैज्ञानिक नजरिये को समाज में स्थापित किया जायेगा. पुनर्जागरण आज के दौर की आवश्यकता ही नहीं अनिवार्य शर्त भी है. जाहिर है पुनर्जागरण समाज और व्यक्तिगत रूपान्तरण परिवर्तन के लिए बुनयादी कार्यभार है.
हम उन नौजवानों, बुद्धिजीवियों और परिवर्तन में विश्वास रखने वाले जिंदादिल लोगों से आह्वान करते हैं कि इस ऐतिहासिक दायित्व में अपना योगदान दें.
आप भी इस पुर्नजागरण आन्दोलन में शामिल होकर अपने समाज की चेतना को उन्नत करने में अपनी भूमिका सुनिश्चित करें. ऐतिहासिक दायित्वबोध आपको और अधिक समाज के नजदीक जायेगा.
                                  - एम् . सी  कश्यप