पिछले दो सालों के अथक प्रयासों और समाज के तमाम तथाकथित बुद्धिजीवियों से मिलकर समाज की दशा व दिशा की विस्तृत चर्चा करने के बाद हमने एक देश व्यापी पत्रिका निकालने का प्रस्ताव लिया क्योंकि आज मछुआ समाज अनेक जातियों और उपजातियों (निषाद, केवट, मल्लाह, कश्यप, रायकवार, साहनी, तुरैहा आदि) में बंटा हुआ है. जो एक दूसरे को छोटे बड़े के रूप बताते है. समाज के इतिहास के बारे में कोई भी व्यक्ति एकमत नहीं है. जितने लोगों से बात की उतने ही प्रकार का इतिहास सामने आया है. इसके आलावा अधिकतर लोगों को इतिहास के बारे में सही जानकारी ही नहीं है. जो भी जानकारी है कहानी-किस्सों में ही पता है.
मछुआ
समाज के लोग सिर्फ जातियों और उपजातियों में ही नहीं बंटे है. बल्कि सभी के
अपने-अपने संगठन है जिसका एक दुसरे से कोई समन्वय नहीं है. मछुआ समाज के लोग
जातियों, उपजातियों के आलावा राजनीतिक पार्टियों में भी बंटे हुए हैं. जिससे समाज
की एकता लगातार खंडित हो रही है. क्योंकि समाज के लोग अलग पार्टियों के साथ सिर्फ
पार्टी की भाषा बोलते हैं, समाज की नहीं.
देश भर
में मछुआ समुदाय किसी न किसी मुद्दे को लेकर आन्दोलन कर रहा है लेकिन एक दूसरे से
कटे होने के कारण किसी भी आन्दोलन व मुद्दों पर अपनी सहमति असहमति की स्थिति में
नहीं है. जबकि पुरे देश में समाज के लोग किसी न किसी मुद्दे को लेकर स्वत्रन्त्र
आन्दोलन कर रहे हैं. बिना ताकत के ये आन्दोलन आसानी से दबा दिए जाते हैं.
वैश्वीकरण
के दौर में मछुआ समाज की चुनौतियां क्या है. इसे कैसे दूर किया जा सकता है, इन
मुद्दों पर भी मतभेद हैं. जबकि वैश्वीकरण की नीतियों ने मछुआ समाज के राजनीतिक,
आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक सभी पहलुओं को प्रभावित किया है और समाज के सामने नई -
नई चुनौतियाँ आ रही है. सांस्कृतिक चेतना बहुत कमजोर होने के चलते सही गलत का
फैसला नहीं कर पाते बल्कि दूसरों पर आश्रित हैं और अपनी साझी विरासत को भूल चुके
है. मछुआ समाज की तमाम जातियों व उपजातियों का अपना इतिहास, भाषा, लोकगीत,
लोक-नृत्य व विरासत विलुप्त हो चुकी है. मछुआ समाज सिर्फ जातियों उपजातियों में ही
नहीं बंटा बल्कि अमीर और गरीब में भी बंटा हुआ है. जिससे समाज अलगाव का शिकार बनता
जा रहा है और मछुआ समाज की बहुसंख्यक आबादी अपमान, शोषण-उत्पीड़न का दंश झेलने पर
मजबूर है.
साथियों
हमारा मानना है कि हमारा समाज टुकड़ों में भिखर हुआ है जिससे इसकी शक्ति भी बिखरी
हुई है, सिर्फ उसको एकता के सूत्र में पिरोने की जरूरत है. यह पत्रिका समाज के
इतिहास की एकता और विचारों की एकता पर बल दे रही है जो समाज की एकता को स्थापित
करेगा. पूरे देश की राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक गतिविधियों को समाज तक
पहुँचायेगा ताकि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को यह पता चले की समाज के कौन-कौन से
अगुआ तत्व समाज के लिए क्या कर रहे हैं. किन मुद्दों को लेकर समाज को आगे बढ़ा रहे
हैं. इस पत्रिका के माध्यम से यह भी पता चलेगा कि राष्ट्रीय लेवल पर समाज का नेता
कोन है जो समाज के बारे सबसे ज्यादा सोचता
है और हमें क्या करना चाहिए. पत्रिका के प्रत्येक अंक में समाज के इतिहास, विचार
और आन्दोलन पर बहस व शोध पत्र भी जारी किये जायेंगे ताकि सम्पूर्ण देश में वैचारिक
परिवर्तन हो सके, जो बुनयादी परिवर्तन को जन्म देगी.
पत्रिका
की विषय-वस्तु और कलेवर के बारे में आपके सुझावों और आलोचनाओं से इसे बेहतर बनाने
में हमें सहयोग मिलेगा ऐसी उम्मीद है.
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