नुक्ता-चीं है ग़म-ए दिल उस को सुनाए न बने
क्या बने बात जहां बात बनाए न बने
मैं बुलाता तो हूं उस को मगर अय जज़्बा-ए दिल
उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने
खेल समझा है कहीं छोड़ न दे भूल न जाए
काश यूं भी हो कि बिन मेरे सताए न बने
ग़ैर फिरता है लिये यूं तिरे ख़त को कि अगर
कोई पूछे कि यह क्या है तो छुपाए न बने
इस नज़ाकत का बुरा हो वह भले हैं तो क्या
हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने
कह सके कौन कि यह जलवा-गरी किस की है
पर्दा छोड़ा है वह उस ने कि उठाए न बने
मौत की राह न देखूं कि बिन आए न रहे
तुम को चाहूं कि न आओ तो बुलाए न बने
बोझ वह सर से गिरा है कि उठाए न उठे
काम वह आन पड़ा है कि बनाए न बने
इश्क पर ज़ोर नहीं है यह वह आतिश ग़ालिब
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
क्या बने बात जहां बात बनाए न बने
मैं बुलाता तो हूं उस को मगर अय जज़्बा-ए दिल
उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने
खेल समझा है कहीं छोड़ न दे भूल न जाए
काश यूं भी हो कि बिन मेरे सताए न बने
ग़ैर फिरता है लिये यूं तिरे ख़त को कि अगर
कोई पूछे कि यह क्या है तो छुपाए न बने
इस नज़ाकत का बुरा हो वह भले हैं तो क्या
हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने
कह सके कौन कि यह जलवा-गरी किस की है
पर्दा छोड़ा है वह उस ने कि उठाए न बने
मौत की राह न देखूं कि बिन आए न रहे
तुम को चाहूं कि न आओ तो बुलाए न बने
बोझ वह सर से गिरा है कि उठाए न उठे
काम वह आन पड़ा है कि बनाए न बने
इश्क पर ज़ोर नहीं है यह वह आतिश ग़ालिब
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
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