Tuesday, 2 April 2013

काम वह आन पड़ा है कि बनाए न बने


नुक्ता-चीं है ग़म-ए दिल उस को सुनाए न बने
क्या बने बात जहां बात बनाए न बने

मैं बुलाता तो हूं उस को मगर अय जज़्बा-ए दिल

उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने


खेल समझा है कहीं छोड़ न दे भूल न जाए

काश यूं भी हो कि बिन मेरे सताए न बने

ग़ैर फिता है लिये यूं तिरे ख़त को कि अगर

कोई पूछे कि यह क्या  है तो छुपाए न बने

इस नज़ाकत का बुरा हो वह भले हैं तो क्या
हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने

कह सके कौन कि यह जलवा-गरी किस की है

पर्दा छोड़ा है वह उस ने कि उठाए न बने

मौत की राह न देखूं कि बिन आए न रहे
तुम को चाहूं कि न आओ तो बुलाए न बने

बोझ वह सर से गिरा है कि उठाए न उठे
काम वह आन पड़ा है कि बनाए न बने

इश्क पर ज़ोर नहीं है यह वह आतिश ग़ालिब

कि लगाए न लगे और बुझाए न बने

ग़ालिब

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