मछुआ समाज का राष्ट्रीय आन्दोलन में भूमिका
1911 में केवट उपजाति की महासभा बनी थी. महासभा बनने के बाद के काल में निषाद
समुदाय के लोगों में राजनीतिक चेतना का प्रसार हुआ. आजादी की लड़ाई में निषादों की
सहभागिता भी बढती गयी.
1942
की अगस्त क्रान्ति में जुब्बा सहनी, बिंदेश्वर
सहनी, बांगुर सहनी, जगदेव सहनी, सागर सहनी, दिबाली मछुआ की शहादत निषादों की
सहभागिता को रेखांकित करने वाले अविस्मरनीय उदाहरण हैं. मुज्जफरपुर जिले के चैनपुर
ग्राम में 1906 में जन्मे जुब्बा सहनी स्वाभिमानी थे.
वह खेत मजदूरी करते थे. एक बार ईख के खेत में काम करते समय एक अंग्रेज अफसर ने
इन्हें अपशब्द कहते हुए जुटे की ठोकर मारी तो इन्होंने उस अंग्रेज अफसर की ईख के
डंडे से पिटाई कर दी. इस कारण मीनापुर के दरोगा वालर ने इनके विरुद्ध अभियोग दायर
कर दिया. फिर क्या था.
जुब्बा सहनी आजादी के दिवानों की टोली में शामिल
हो गये. 1942 की अगस्त क्रान्ति में जुब्बा सहनी ने देशभक्तों के जत्थे के साथ मीनापुर थाने को घेर लिया और थानेदार वालर को थाना छोड़
देने का आदेश दिया. इस क्रम में वालर ने भीड़ पर गोलियां चला दी, जिससे बिन्देश्वर
सहनी और बांगुर सहनी शहीद हो गये. क्रोधित भीड़ ने वालर को पकड़ लिया और थाने के फर्नीचर
को जमाकर उसमे आग लगा दी और वालर को उस आग में झोंक दिया. जुब्बा सहनी गिरफ्तार कर
लिए गये. उन्हें फंसी की सजा हुई. 11 मार्च 1944 को भागलपुर केंद्रीय कारा
में उन्हें फांसी दी गयी.
मुज्जफरपुर के चांदपुर थाने के सागर सहनी ने भी
भारत-छोडो आन्दोलन में सक्रिय सहयोग दिया. अगस्त 1942 में पुलिस की गोली बारी में घायल होने के बाद
मोतिहारी अस्पताल में इनकी मृत्यु हो गयी.
पूर्णिया जिले के रुपौली
थाने पर 25 अगस्त 1942 को आक्रमण में शामिल जगदेव सहनी पुलिस की गोली से घायल होने के बाद शहीद हो
गये. आन्दोलनकारी होने के जुर्म में सब्जीबाग, पटना के निवासी दिबाली मछुआ को 26 अगस्त 1942 में ब्रिटिश पुलिस द्वारा कृष्णाघाट,
पटना के निकट गोली मार दिया गया.
समस्तीपुर जिला के गुनाई
बसही ग्राम के श्री कोशी सहनी के पुत्र डा. मुक्तेश्वर सिन्हा दरभंगा चिकित्सा
विद्दालय के मेधावी छात्र तो थे ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य के
रूप में राजनीती भी की. उन्होंने ताजपुर में विद्दालय की स्थापना भी करवाई. 1942 की क्रान्ति में अपने
क्रन्तिकारी साथियो के साथ ताजपुर थाने पर राष्ट्रीय झंडा फहराया. नगर के मार्ग
अवरुद्ध किये एवं पुल उड़ा दिया. इन आरोंपों में उन्हें 50 बेंत की सजा दी गयी और
समस्तीपुर जेल में बंद कर दिया गया.
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