Tuesday, 30 October 2012

कश्यप या मछुआ समुदाय के महानायक

जो देश के लिए मर मिटे, लेकिन उन्हें भारत के इतिहास में सही जगह नहीं मिली या यूं कहें कि भारत सरकार ने उन्हें भूला दिया.आदिवासियों के कई महानायक हैं जो देश के लिए एक मिसाल कायम कर गए...
 

टंट्या भील: वर्ष 1800 का दौर अंग्रेजी सत्ता का अत्याचारी दौर था.उस दौर में अंग्रेजों के नाक में दम करने वाले क्षेत्रीय बहादुरों में ऐसे कितने ही जांबाज रहे हैं जिनका नाम इतिहास में कभी नहीं जुड़ा.किंतु अपने शौर्य और अपने कारनामों से जनता के दिलों में आज तक जिंदा हैं.ऐसे ही शहीदों में एक नाम मध्य प्रदेश के मालवा अंचन के टंटिया भील का है जो आज भी इस अंचल के लोगों के लिए भगवान का स्थान रखता है.अंग्रेजों की हालत पतली कर देने वाले इस युवक को आज तक अंग्रेजी दस्तावेज भारत का पहला राबिनहुड मानते हैं.अमीरों को लूटना और गरीबों में बांट देना ही टंटीया का धर्म था और शायद इसी धर्म ने उसे जननायक बनाया था।

तिलका माझी: पहले संथाल वीर थे जिन्होने अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी संघर्ष किया.उनका गोफन मारक अस्त्र था.उससे उन्होने अनेक अंग्रेजों को परलोक भेजा.अन्तत: अंग्रेजों की एक बड़ी सेना भागलपुर के तिलकपुर जंगल को घेरने भेजी गयी.बाबा तिलका मांझी पकड़े गये.उन्हे फांसी न दे कर एक घोड़े की पूंछ से बांध कर भागलपुर तक घसीटा गया.उनके क्षत-विक्षत शरीर को कई दिन बरगद के वृक्ष से लटका कर रखा गया।

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