Tuesday, 30 October 2012

ओ माझी !...

ओ माझी !
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हाथों में थामे छेनी हथौड़ी
जब तुमने घूरा होगा पहाड़
एक वारगी तो
कुदरत की भी सांसे अटकी होंगी

पाताल तक जड़ें जमाये
आसमान तक सिर उठाये
पहाड़ की रूह कांपी होगी
छेनी से निसृत शब्द
मुक्ति का बीजमंत्र
संगीत का नया सुर
पक्षियों के कलरव सा
झरनों की कलकल सा
फैला ब्रह्मांड में
चुगलखोर हवा ने
घर घर की चुगली
क्या ज़माना है
एक जुगनू सूरज को
गैरहाजिर करने पर उतारू है
लेकिन ज़रूरी नहीं
हवा ही तय करे
लहरों का भविष्य
अंतस की ऊर्जा से
पैदा होता महाविस्फोट
तमस के विरुद्ध शंखनाद
नवनिर्माण का सूत्रपात .

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